शादी समारोह या कोई पारम्परिक और सामाजिक आयोजन , लहंगा के प्रति स्त्रियों और नवयुवतियो का आकर्षण कोई नई घटना नहीं है ! आयोजन में सुर्खिया बटोरने में भी खूबसूरत लहंगे की अपनी ही अहम् भूमिका है ! ऐसे में रूप-रेखा और कद-काठी के हिसाब से लहंगे का चुनाव और भी महत्व पूर्ण हो जाता है ! सिर्फ अपनी पसंद को ही सवोपरी रखने का मतलब है अपनी सुन्दरता से बेईमानी !
Table of Content (toc)
लाल लहंगा ये कानों में झुमके ये लाल लाली होठों पर उनकेआज कुछ ऐसे सजा रखा था उसने खुदको की एक मुद्दत के बादफिर उसपे मरने का मन करता हैं!
भारतीय ही नहीं वरन पश्चिमी सभ्यता में भी इसका अपना ही महत्व है ! भारतीय फैशन परिधानों, वस्त्रों और डिजाइनों की दिलचस्प किस्मों का खान है। भारतीय भूगोल, इतिहास और संस्कृति के विस्मयकारी परिमाण और प्रभाव जीवन और समाज के हर पहलू को प्रभावित करते हैं, जिसमें कपड़ों की शैली भी शामिल है।
भारत के कई पारंपरिक परिधानों का एक लंबा और शानदार इतिहास है, लेकिन कोई भी लहंगा चोली जितना शानदार और मोहक नहीं है। इसका एक अद्वितीय इतिहास है, जो हमेशा भारतीय फैशन का एक केंद्रीय हिस्सा रहा है
लहंगा एक परिचय
भारतीय राज्यों राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर में इसे पारम्परिक परिधान के रूप में भी
पहना जाता है। लेहेंगा को घाघरा चोली, लहंगा चोली और
स्थानीय रूप से चनिया चोली के रूप में भी जाना जाता है।
लहंगे का इतिहास
राजपूतों की इस पोशाक को अंतिया के नाम से जाना जाता था। बेशक राजपूतों ने पोशाक में एक लालित्य
जोड़ा, परन्तु मुगलो ने भारतीय फैशन में लहंगा
चोली के प्रचलन को नई आयाम प्रदान किया ।
लहंगे का इतिहास मुगल काल से शुरू होता है, जब यह परिधान महिलाओं द्वारा पहना जाता था। यह उस अवधि के दौरान फला-फूला, न केवल अमीर, उच्च वर्ग की महिलाओं और राजघरानों के बीच, बल्कि जनता के बीच भी सबसे अधिक पहना जाने वाला परिधान बन गया।
लहंगे की उत्पत्ति की कहानी समय की धुंध में खो गई है, लेकिन ये वस्त्र बहुत जल्दी महिलाओं के लिए सबसे लोकप्रिय भारतीय पोशाक बन गए।
20वीं सदी की शुरुआत में मुगल शासन के पतन के बाद भी, देश भर की महिलाओं ने लहंगा चोली पहनना जारी रखा और आज भी नवयुवती या अधेड़
उम्र औरत इसको पहन कर इतराना और अपनी खूबसुरती को दिखाना चाहती है।
लहंगा और घाघरा कही एक ही तो नहीं ....
पहली नज़र में एक सी
लगाने वाली लहंगा और घाघरा बिलकुल अलग और अद्वितीय विशेषताओ से परिपूर्ण है! बिहार, गुजरात, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्यों में लड़कियों और महिलाओं द्वारा
घाघरे पहने जाते हैं, जबकि लहंगे घाघरों के उपांतरितऔर आधुनिक
रूप हैं।
लहंगा आमतौर पर शादियों, संगीत और त्योहारों के दौरान पहना जाता है, जबकि घाघरा भारत में
पारंपरिक महिलाओं द्वारा दैनिक पहनावे के रूप
में उपयोग किया जाता है।
लहंगा और घाघरा की विशेषताओं
की तुलना में अधिक समानताएं होने के बावजूद, लहंगे और घाघरा में निम्नलिखित मामूली अंतर हैं:-
· घाघरा के ब्लाउज आम तौर पर
लंबे होते हैं, जो मध्य
भाग को अधिक कवर करते हैं, जबकि लहंगे में छोटे ब्लाउज होते हैं।
· लहंगे मुगल संस्कृति से काफी
प्रभावित हैं, जिसमें
बहुत सारी कढ़ाई और पत्थर या जडी का काम है, जबकि घाघरों पर भारतीय प्रभाव है।
· लेहेंगा फॉर्म-फिटिंग कपड़े हैं और पहनने वाले के शरीर के आकार को बढ़ाने के लिए कमर पर पहने जाते हैं। दूसरी ओर, घाघरा ढीले-ढाले होते हैं जो भारतीय संस्कृति से प्रेरित हैं !